Bad Company short moral story

Written by Krishna Jain  »  Updated on: November 19th, 2024

Bad Company short moral story

इस कहानी में, हम संगति के महत्व को समझते हैं। यह हमें सिखाती है कि बुरी संगति किसी भी अच्छे व्यक्ति को भी खराब बना सकती है, ठीक वैसे ही जैसे एक सड़ा हुआ सेब बाकी सेबों को भी खराब कर देता है। माता-पिता के रूप में, हमें अपने बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि वे अपनी संगति का चयन सावधानी से करें, क्योंकि यह उनके व्यक्तित्व और भविष्य पर गहरा प्रभाव डाल सकती है।

कहानी से सीख (Moral of The Story)

Krishna Jain


एक बार की बात है, एक बालक बड़ी बुरी संगति में फँस गया। वह दिन भर आवारा बच्चों के बीच में हाई रहता था।

उसका पढ़ाई में बिल्कुल भी मन नहीं लगता था। उसके माता-पिता भी उसके चाल चलन से बहुत दुखी रहते थे।

उसको बार बार समझाते भी थे। कभी-कभी डराते व धमकाते भी थे।

उसके पिता जी बाज़ार गए। वहाँ से वह एक किलो ताजे सेब ले कर आए।

लेकिन उसके व्यवहार में कोई अंतर नहीं आता था।

घर वालों के बार- बार मना करने पर भी वह बुरे बच्चों का साथ नहीं छोड़ता था।

एक बार उसके पिता जी बाज़ार गए। वहाँ से वह एक किलो ताजे सेब ले कर आए।

लेकिन उनके साथ वह एक सड़ा हुआ सेब भी लाए।

उन्होंने सभी सेब अपने लड़के को देकर कहा, इन्हें मिलाकर अलमारी में रख दो।

लड़के ने सभी सेब मिलाकर अलमारी में रख दिए।

तीसरे दिन उसके पिता जी ने कहा- बेटा यहाँ आओ। अलमारी में से सेब ले आओ, सेब खाएँगे।

लड़का दौड़कर सेब ले आया। लेकिन वह सेब देखकर हैरान हो गया। क्यूँकि सभी सेब सड़ गए थे।

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उसने अपने पिता जी से कहा परसों तो सारे सेब अच्छे थे।केवल एक ही सेब ख़राब था। आज इन्हें क्या हो गया।

उसके पिता जी ने कहा बेटा एक सड़े हुए सेब की संगति पाकर अन्य ताजे सेब भी सड़ गए।

इसी प्रकार एक ही गलत लड़के की संगति पाकर कई अच्छे लड़के भी गलत हो जाते है।

गलत संगति पाकर आदमी भी सेबों की तरह बेकार हो जाता है। इसलिए गलत संगति में नहीं पड़ना चाहिए।

उस दिन से उस लड़के ने बुरी संगति छोड़ दी और वह एक अच्छा लड़का बन गया

बुरी संगति कभी नहीं करनी चाहिए।हमेशा अच्छे ओर सच्चे दोस्त बनाने चाहिए।

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एक बार की बात है, एक बहुत घना जंगल था, जहाँ सभी जानवर एक दूसरे के साथ बहुत प्यार से रहा करते थे। उस जंगल के बीच एक बहुत सुंदर और बड़ा तालाब भी था। उस तालाब में एक मगरमच्छ और उसका परिवार रहता था।

और तो और तालाब के चारों ओर बहुत सारे मीठे-मीठे फलों के पेड़ लगे हुए थे। उनमें से एक जामुन के पेड़ पर एक बंदर रहता था। उस पेड़ के जामुन बहुत मीठे थे।

बंदर और मगरमच्छ एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त थे।बंदर पेड़ से मीठे और स्वादिष्ट जामुन खाता रहता था और साथ ही साथ, अपने दोस्त मगरमच्छ को भी देता रहता था।

दोनों जामुनों को बड़े ही चाव से मिलकर खाते थे। (1)

बंदर अपने दोस्त मगरमच्छ का खास ख्याल रखता था और मगरमच्छ भी उसे अपनी पीठ पर बैठाकर पूरे तालाब में घुमाता रहता था।

ऐसे ही हँसी ख़ुशी, दिन निकलते गए और दोनों की दोस्ती बहुत गहरी होती गई। बंदर जो जामुन मगरमच्छ को खाने के लिए देता था, मगरमच्छ उनमें से कुछ जामुन अपनी पत्नी के लिए भी ले जाता था। दोनों जामुनों को बड़े ही चाव से मिलकर खाते थे।

कुछ दिनों के बाद, मगरमच्छ की पत्नी ने सोचा कि बंदर तो हमेशा ही स्वादिष्ट जामुन खाता रहता है।जब जामुन इतने स्वादिष्ट है तो उसका कलेजा कितना स्वादिष्ट होगा।

उसने यह सारी बात मगरमच्छ को भी बोली (1)

उसने यह सारी बात मगरमच्छ को भी बोली और वह उससे जिद करने लगी कि उसे तो बंदर का कलेजा ही खाना है।मगर ने उसे बहुत समझाने कि कोशिश की, लेकिन उसने उसकी एक भी बात नहीं मानी और वह मगरमच्छ से रूठ गई।

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अब मगर को न चाहते हुए भी उससे हाँ बोलना पड़ा। उसने अपनी पत्नी से कहा कि वह बंदर को अपनी गुफा में लेकर आ जाएगा, तब उसका कलेजा निकालकर खा लेना।

हर दिन की तरह स्वादिष्ट जामुनों के साथ बंदर मगरमच्छ का इंतजार कर रहा था। कुछ ही देर में मगर आ गया और हमेशा की तरह दोनों ने मिलकर जामुन खाए।

मगरमच्छ ने बंदर से बोला कि दोस्त आज तुम्हारी भाभी तुमसे मिलना चाहती है। चलो तालाब की दूसरी ओर मेरा घर है, आज वहाँ चलते हैं।

बंदर भी मगरमच्छ की पत्नी से मिलने के लिए तुरंत मान गया और उछलकर मगरमच्छ की पीठ पर बैठ गया। मगरमच्छ उसे लेकर अपनी गुफा की ओर बढ़ने लगा।

जैसे ही दोनों तालाब के बीच पहुँचे, वैसे ही मगरमच्छ ने कहा कि मित्र आज तुम्हारी भाभी की एक इच्छा है कि वह तुम्हारा स्वादिष्ट कलेजा खाये। ऐसा कहकर उसने बंदर पूरी बात बता दी।

सारी बात सुनकर बंदर कुछ सोचने लगा और मगरमच्छ से बोला, मित्र तुमने मुझे यह पहले क्यों नहीं बताया। मगर ने पूछा क्यों मित्र क्या हो गया। तुम ऐसा कु बोल रहे हो।

एक बंदर गुस्से में मगरमच्छ को पेड़ से डांट रहा था (1)

एक बंदर गुस्से में मगरमच्छ को पेड़ से डांट रहा था (1)

बंदर ने बोला कि मैं तो अपना कलेजा, पेड़ पर ही छोड़ आया हूँ। तुम मुझे वापस ले चलो तो मैं अपना कलेजा अपने साथ में ले आऊँगा। जिससे भाभी की इच्छा भी पूरी हो जाएगी।

मगरमच्छ भी बंदर की बातों में आ गया और उसे वापस किनारे पर ले आया। वो दोनों जैसे ही किनारे पर पहुँचे वैसे ही बंदर झट से अपने पेड़ पर चढ़ गया।

पेड़ पर चढ़ते ही बोला कि मूर्ख मगरमच्छ, तुझे पता नहीं कि कलेजा हमारे अंदर ही होता है। मैं हमेशा ही तुम्हारा भला सोचता रहा और तुम मुझे ही खाने चले थे। कैसी मित्रता है यह तुम्हारी। चले जाओ यहां से अब मैं तुम्हारा मित्र नहीं हूँ।

मगरमच्छ अपनी करनी पर बहुत शर्मिंदा हुआ और उसने बंदर से माफ़ी भी माँगी, लेकिन अब बंदर उसकी बातों में नहीं आया और उसे वहाँ से चले जाने को कहे दिया।

शिक्षा:

मुसीबत के समय घबराने की वजह, हमें अपनी बुद्धि का उपयोग करके उसे दूर करने का उपाय सोचना चाहिए।

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